माँ, तू क्यूँ है चिंतित,
मन तेरा किधर खो रहा...
मत सोच, उस संसार के लिए,
दुख-रोष जहाँ व्याप्त हो रहा...
नित सबेरे कोमल हाथो सें,
तुझको मैं जगाऊँगी...
नन्हें कदमों और किल्कारी से,
घर आँगन महकाऊँगी...
जल्दी दे दो दूध-बिस्कुट,
मैं बड़ी हो जाऊँगी...
खुश कर तेरे इस हृदय को,
सुंदर "परी" कहलाऊँगी..
~ तविषी बजाज
मन तेरा किधर खो रहा...
मत सोच, उस संसार के लिए,
दुख-रोष जहाँ व्याप्त हो रहा...
नित सबेरे कोमल हाथो सें,
तुझको मैं जगाऊँगी...
नन्हें कदमों और किल्कारी से,
घर आँगन महकाऊँगी...
जल्दी दे दो दूध-बिस्कुट,
मैं बड़ी हो जाऊँगी...
खुश कर तेरे इस हृदय को,
सुंदर "परी" कहलाऊँगी..
~ तविषी बजाज
3 comments:
nice poem
mere blog par bhi aaiyega
umeed kara hun aapko pasand aayega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
iam also from ujjain
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