Wednesday, March 2, 2011

उज्जैन की यादे...

आओ लौट चले उन पिछली यादों में...
जीया करते थे जब हम उन्मादों मे...

याद आती है क्षिप्रा नदी की शाम...
और वो मेघदूत की पार्टी में झाम...

चौपाटी पर करने को जाते सब सैर...
नयन-सुख उठाए और लौटे खाए बगैर...

याद आती है डालु की कचोरी-चाय...
1-1 रुपये का जब हिसाब मिलाए...

और कुछ ना मिले अपने कॅंटीन मे हाय...
पूरन और कालू के ताज़े समोसे खाए...

शिवानी भी हमें बहुत याद आए...
वही थी जो हमें पास करवाए...

हर पेपर के बाद महाकाल जाए...
और किसी को वही अकेले छोड़ आए...

रिज़ल्ट के पोहे महीनो बाँटे जाए...
जो उम्मीद ना हो वैसे नंबर पाए...

कुछ ऐसी ही उज्जैन की यादे सताए...
क्यूँ ना फिर सब मिल ये दोहराए...

द्वारा - सौरभ बजाज