एक बार एक ऋषि ने एक सांप को शिक्षा दिया कि शांतिप्रिय बनो, किसी को काटना
गलत बात है। तुम लोगों को काटना छोड दो। साप ने बात मान ली। कुछ ही दिन
में सारे लोग ये बात जान गए की ये सांप काटता नही है। लोग उस सांप का मजाक
बनाने लगे। कोई उसके ऊपर पैर रख के चल देता तो कोई उससे नजरे मिला के
गिल्ली-गिल्ली करता। बच्चे उसे रस्सी बनाकर के रस्सा-कस्सी का खेल खेलते।
एक वृद्ध ने तो एक दिन उससे अपना अनाज का बोरा तक बाँध
दिया। इन सब बातों से आहत होकर सांप पुनः ऋषि के पास पहुंचा और ऋषि को
अपनी व्यथा सुनाई। सब जानकर ऋषि ने उसे एक बात बोली- "अरे मुर्ख मैंने
काटने से मना किया था, फुंफकार मारने से नही। तुमने फुंफकार मारना क्यूँ
छोड़ दिया?"
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मैं कोई ऋषि तो नहीं लेकिन मेरा आग्रह सरकार से यही है की युद्ध भले न करो किन्तु फुंफकार तो ऐसी मारो की दुश्मनों की फट के हवा हो जाये। नही तो फिर युहीं अपना मजाक बनवाते रहो। कभी पाक से कभी चीन से ।
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मैं कोई ऋषि तो नहीं लेकिन मेरा आग्रह सरकार से यही है की युद्ध भले न करो किन्तु फुंफकार तो ऐसी मारो की दुश्मनों की फट के हवा हो जाये। नही तो फिर युहीं अपना मजाक बनवाते रहो। कभी पाक से कभी चीन से ।
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