Tuesday, April 27, 2010

अन्तर्व्यथा...

अंतर्मन की गहराई मे झाँक तो तू जरा,
कितना द्वेष, छल-कपट इसमे है भरा,
हर कोई हैं सिर्फ़ स्व-सम्मान से ही घिरा,
परंतु दूसरो की परवाह करे कोई निरा...
 
अथाह दुख और पीड़ा से भरा ये संसार,
कर रहा हर मानव-अंश हाहाकार,
सुनो जरा अपने मन की चीत्कार,
किसी पर क्यूँ करे अब कोई ऐतबार ??? 

~ सौरभ बजाज

No comments: