Listening this song repeatedly for last few days, Probably to increase the brutality and fearsomeness in my soul.
Listen it here.
आरंभ है प्रचंड,बोले मस्तको के झुंड
आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आरंभ है प्रचंड,बोले मस्तको के झुंड
आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड,बोले मस्तको के झुंड
आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्व शक्तिमान है
ईश्र की पुकार है यह भागवत का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवो की भीड़ हो या पाण्डवो का नीर हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवस नही, किसी पे कोई वश नही
क्या ज़िंदगी है ठोकरो पे मार दो
मौत अंत है नही तो मौत से भी क्यूँ डरे?
यह जाके आसमान में दहाड़ दो
आरंभ है प्रचंड,बोले मस्तको के झुंड
आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
हो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम यह सोच लो
या की पूरे भाल भर जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल, तुम यह सोच लो
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या की
केसरी हो लाल तुम यह सोच लो
जिस कवि की कल्पना में ज़िंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती नसो में आज, फूलती रगो में आज
आग की लपट का तुम बघार दो
आरंभ है प्रचंड,बोले मस्तको के झुंड
आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
आरंभ है प्रचंड
आरंभ है प्रचंड
आरंभ है प्रचंड
होये होये होये
Neither I am a perfectionist nor I want to be... I just want to live my life like a normal person and give happiness to others...
Friday, March 26, 2010
Tuesday, March 23, 2010
Nostalgia...
I am very bad in keeping up with my new year resolution... :-(
I have been travelling a lot in last few weeks which has disturbed my writing habits, Thoughts are there but no time to jolt it down.
Had really great time in Bangalore last whole week. Enjoyed it to the fullest, dined in different cuisines, spent great time with colleagues as well as friends there.
This time my bangalore trip was longer than the earlier one so was able to communicate with everyone properly and spend some quality time with them.
After coming back here in Mumbai I don't feel like at home, I am missing Namma Bengaluru... When I was there I did not like it and when I am here I am missing it... The rule of life is applicable here too... Grass is always greener on the other side..
Hope I get over this nostalgia soon...
PS: Thanks to all old friends for the awesome pot-lunch party :-) We should organize such get-togethers more often.
I have been travelling a lot in last few weeks which has disturbed my writing habits, Thoughts are there but no time to jolt it down.
Had really great time in Bangalore last whole week. Enjoyed it to the fullest, dined in different cuisines, spent great time with colleagues as well as friends there.
This time my bangalore trip was longer than the earlier one so was able to communicate with everyone properly and spend some quality time with them.
After coming back here in Mumbai I don't feel like at home, I am missing Namma Bengaluru... When I was there I did not like it and when I am here I am missing it... The rule of life is applicable here too... Grass is always greener on the other side..
Hope I get over this nostalgia soon...
PS: Thanks to all old friends for the awesome pot-lunch party :-) We should organize such get-togethers more often.
Thursday, March 18, 2010
Tuesday, March 9, 2010
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
कभी समझो तुम कुछ नही..
और करता रहूँ मैं बाते अथाह...
कभी ना कहूँ मैं कुछ...
फिर भी चाहो तुम समझना...
हर पल करो कोशिश जानने की ...
और पाओ खुदको उसी उलझन मे उलझा...
कभी लगे तुम जानो सब कुछ...
जैसे तुम हो खुदा...
और कभी तुम ना करो
बिल्कुल भी मेरी परवाह...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
कभी मैं कहूँ तुमसे बहुत कुछ...
ना जानू खुद उसका फलसफा...
पर हर उस बात में जो मैं लिखूं..
है मेरे मन की अवस्था...
और हर वो बात जो मैं कहूँ...
वो है मेरे मन की व्यथा...
तुम जानना चाहो उसे...
पर देख ना पाओ वो पूरा जलसा...
तुम देखो मेरे वो छिन्न भिन्न स्वरूप..
और पाओ खुद को ठगा हुआ...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
कभी ना दूँ मैं तुम्हारे सवाल का जवाब...
और कभी करूँ तुम्हे गुमराह...
हैरान से तुम सोचो...
कैसा है ये इनसाँ...
कभी लगूँ मैं श्रांत पथिक...
कभी लगूँ मैं उत्सुक इंसान..
कभी लगूँ मैं संतुष्ट प्राणी...
कभी लगूँ मैं जिद्दी शैतान...
कभी लगूँ मैं एकदम परिपक्व...
कभी लगूँ मैं बिल्कुल नादान...
न तुम जानो कैसे समझो मुझे...
और स्वीकारो अपनी विफलता...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
ख़त्म होगा ये खेल तब...
जब शायद मैं थक जाऊँ...
या ख़त्म होगा ये तब...
जब शायद तुम चले जाओ...
तब तक हर साँस मे...
मुझे पाओगे तुम...
हर कहे लफ़्ज मे ...
अपना एहसास पाओगे तुम...
जानते हो की ये पहेली...
रहेगी अब उनसुलझी सदा...
फिर क्यों तलाश कर रहे...
हम अपनी ज़िंदगी का फलसफा...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
और करता रहूँ मैं बाते अथाह...
कभी ना कहूँ मैं कुछ...
फिर भी चाहो तुम समझना...
हर पल करो कोशिश जानने की ...
और पाओ खुदको उसी उलझन मे उलझा...
कभी लगे तुम जानो सब कुछ...
जैसे तुम हो खुदा...
और कभी तुम ना करो
बिल्कुल भी मेरी परवाह...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
कभी मैं कहूँ तुमसे बहुत कुछ...
ना जानू खुद उसका फलसफा...
पर हर उस बात में जो मैं लिखूं..
है मेरे मन की अवस्था...
और हर वो बात जो मैं कहूँ...
वो है मेरे मन की व्यथा...
तुम जानना चाहो उसे...
पर देख ना पाओ वो पूरा जलसा...
तुम देखो मेरे वो छिन्न भिन्न स्वरूप..
और पाओ खुद को ठगा हुआ...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
कभी ना दूँ मैं तुम्हारे सवाल का जवाब...
और कभी करूँ तुम्हे गुमराह...
हैरान से तुम सोचो...
कैसा है ये इनसाँ...
कभी लगूँ मैं श्रांत पथिक...
कभी लगूँ मैं उत्सुक इंसान..
कभी लगूँ मैं संतुष्ट प्राणी...
कभी लगूँ मैं जिद्दी शैतान...
कभी लगूँ मैं एकदम परिपक्व...
कभी लगूँ मैं बिल्कुल नादान...
न तुम जानो कैसे समझो मुझे...
और स्वीकारो अपनी विफलता...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
ख़त्म होगा ये खेल तब...
जब शायद मैं थक जाऊँ...
या ख़त्म होगा ये तब...
जब शायद तुम चले जाओ...
तब तक हर साँस मे...
मुझे पाओगे तुम...
हर कहे लफ़्ज मे ...
अपना एहसास पाओगे तुम...
जानते हो की ये पहेली...
रहेगी अब उनसुलझी सदा...
फिर क्यों तलाश कर रहे...
हम अपनी ज़िंदगी का फलसफा...
बैचैन होकर तुम कहो मुझे पागल
और दूँ मैं बस मुस्कुरा...
द्वारा - सौरभ बजाज
No updates...
I know it has been long time since this space is updated, But I am unable to do so because of my extensive travels and work commitments.
Will try to update it as soon as possible...
Will try to update it as soon as possible...
Monday, March 1, 2010
Its Holi Time...
Happy Holi to all of you...
I have not played Holi at the fullest as I used to play. Reason is none of my dear friends are in the town for it, My Big B is also not here and there is an excuse for saving water too.
We played Dry Holi with gulaal and enjoyed in the best possible way we can ;-)
Return journey is scheduled for evening again with the same group but this time I have confirmed seat and luckily most of them also got, So not much adjustments required.
Subscribe to:
Posts (Atom)